Type Here to Get Search Results !

दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, संगीत एवं नाटक विभाग द्वारा




दरभंगा::-जहां लोक होंगे वहां विविधता होगा ही।लोक के साथ विविधता जुड़ा हुआ रहता है। विविधता में जो श्रेष्ठता है वह लोक का निर्माण करती है। उक्त बातें आज ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय संगीत एवं नाट्य विभाग  की ओर से " लोक के विविध रंग " विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए बतौर मुख्य संरक्षक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा। उन्होंने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि जो रंग हम देना चाहते हैं वह कितना सुन्दर, हितकारी, दूरगामी होगा ये अलग-अलग पक्ष हैं परन्तु वह रंग जो किसी के विचार में,सोच में नहीं आया हो वह सर्वोत्तम होगा।


विश्वविद्यालय संगीत एवं नाट्य  विभाग द्वारा द्विदिवसीय राष्ट्रीय  संगोष्ठी"लोक के विविध रंग " के प्रथम दिन  आज माननीय  कुलपति महोदय  द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का दीप प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन किया गया।  आरंभ में संगोष्ठी की संयोजिका प्रो लावण्य कीर्ति सिंह काब्या ने विषय वस्तु पर प्रकाश डाला।

      इस सत्र की मुख्य  अतिथि पद्मभूषण डा श्रीमती शारदा सिन्हा थी जिन्होंने  लोक के विविध  रंगों में लोक गीत की अनुपम व्याख्या की।उन्होंने लोक शैली की अनेक रचनाओ को गाकर भी सुनाया।उन्होंने  कहा कि  लोकगीतों को फिल्मों

में भी अपनाया गया है और उन्हीं धुनों पर फिल्मी गीतों को बनाया गया है ,यथा- पिया मोर बालक हम तरूणी गे( तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ)इत्यादि।

अपने उद्बोधन में विश्वविद्यालय की प्रति कुलपति प्रो डाली सिन्हा ने कहा कि कला को विज्ञान  के साथ जोड़कर देखने की आवश्यकता को बताया।

 सेमिनार के दूसरे सत्र की मुख्य वक्ता रहीं प्रोफेसर पंकज माला शर्मा जी।वेदो केअध्ययन पर अपना अधिकार रखने वाली विदुषी वक्ता ने वेद और लोक पर अपना विचार व्यक्त किया।उन्होंने बताया कि ऋग्वेद में करीब 30 बार लोक शब्द का प्रयोग हुआ है।लोक का अर्थ दर्शन से है।देखने से है।वेद का ज्ञान अलौकिक जो सकता है परंतु इसकी रचना लौकिक है।ऋग्वेद और सामवेद तो विशिष्ट जनों तक सीमित रहा,अपने नियमों की जटिलता के कारण परंतु अथर्वेद सामान्य जनों तक रहा।आज जो भी लोकगीत गाये जाते हैं उनकी पृष्ठभूमि वेद के मंत्रों व सूक्तो में देखने को मिलती है।आदर्श परिवार की परिकल्पना वेदों में मिलती हैं।ऋतुओं से संबंधित गीत,श्रमगीत,व व्यवसाय गीत भी सामगान के मंत्रों के रूप में वेदों में मिलते हैं।उन्होंने ये भी बताया कि अथर्वेद के 20वे अध्याय में लोकसंगीत के लिए कुंताप शब्द का प्रयोग मिलता है।कुंताप का अर्थ कुत्सित कर्म या पापकर्म से उबरना होता है, जिसके लिए उसके 15 प्रकार बताए गए हैं जैसे नाराशन्शी,परीक्षित,जनकल्पा आदि।ये लोकगीत के विभिन्न तत्वो जैसे,दान की चर्चा,ईश्वर की स्तुति,उपदेशात्मक गीत,नीतिपरक गीत,जन स्तुति,मीठी गारी से जुड़ी थी।इनके द्वारा मन को आह्लादित किया जाता था।इन ऋचाओ के स्वर नही होते थे,अर्थात नियमो के बंधन नही थे ,बल्कि स्वेच्छा से गाये जाते थे।संभवतः यही लोक के विविध रंगों की पृष्ठभूमि थी।

     आज हमारे आज के कार्यक्रम की बीज वक्ता रही ---प्रसिद्ध लोक गायिका   'पद्मश्री'श्रीमती मालिनी अवस्थी।

आपने अपने गीतों के माध्यम से अति सुंदर व्याख्या लोक की तथा लोकगीतों में निहित लोकमंगल की भावना ,परार्थ की भावना को बड़ी सहजता से समझाया।उन्होंने इन गीतों में नारियों के सशक्त रूप की चर्चा,संयुक्त परिवार की सुंदरता,तथा पारिवरिक रिश्तों की मधुरता को गीतों के माध्यम से बड़े सुंदर अंदाज़ में बताया।उन्होंने लोकगीतों में गहरे व्याप्त सरल जीवन जीने के संदेश को भी बताया।देवीगीत,ऋतू गीत सोहर विवाह गीत के अनेक प्रकारों को गाकर सभी का मन मोह लिया।बड़े ही सुंदर गीतों जैसे-- निमिया के डार मइया मोरी झूले ली .....सूरजमुख ना जाइबो हाय राम बिंदिया के रंग उड़ा जाए.... तथा अपना लोकप्रिय गीत सैंया मिले लरकैया मैं का करूँ... आदि।

 इंग्लैंड  से जुड़ी सुप्रसिद्ध  नृत्यांगना विदुषी काजल  शर्मा  ने लोक और कथक नृत्य  के अन्तर्संबंध पर

सोदाहरण-व्याख्यान प्रस्तुत  किया।अनेक रचनात्मक उदाहरणों द्वारा विषय को स्पष्ट  किया।काजल शर्मा जी ने लोक और कथक के संबंध पर विस्तृत व्याख्या की।ग़ज़लों,होरी गीत आदि के माध्यम से उन्होंने नृत्य द्वारा विषय को स्थापित करने का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया।साथ ही उसे लोक से जोड़ते हुए लोक की व्याख्या भी की।

   आज के अन्तिम सत्र में काशी हिन्दु विश्वविद्यालय  की प्रो रेवती साकलकर ने 

उपशास्त्रीय और लोक शैली को बहुत सुन्दर ढ़ंग से प्रस्तुत  किया ।अनेक  रचनाओ को गाकर  विषय को सम्पुष्ट किया,यथा- "श्याम तोसे नजरिया लग जाएगी।'

 विभाग की अध्यक्षा डा ममता रानी ठाकुर , ललित कला संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो पुष्पम नारायण, संकायाध्यक्ष मानविकी प्रो प्रीती झा, संकियाध्यक्ष विज्ञान प्रो रतन कुमार चौधरी, विभागाध्यक्ष प्रो एन के बच्चन , प्रो जीतेन्द्र नारायण के साथ संगीत प्रेमी शिक्षक, शोधार्थी एवं छात्र छात्राएं उपस्थित थीं।

Tags

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.